दिल्ली की हवा को राहत देने के लिए अब आसमान से मदद ली जा रही है।
सरकार जल्द ही एक ऐसा प्रयोग शुरू करने जा रही है,
जिसमें कृत्रिम बारिश के ज़रिए प्रदूषण कम करने की कोशिश होगी।
पर्यावरण मंत्री मंजीन्दर सिंह सिरसा ने बताया कि
इस तकनीक को इस्तेमाल करने की सारी तैयारी हो चुकी है —
और उम्मीद है कि यह तरीका दिल्ली के मौसम और सांस लेने की हालत — दोनों को बेहतर बनाएगा।
☁️ बादलों से बारिश छेड़ने की तैयारी
IIT कानपुर की मदद से तैयार की गई इस तकनीक में
कुछ खास किस्म के सूक्ष्म कण — जैसे सिल्वर आयोडाइड और रॉक सॉल्ट —
एक हल्के विमान की मदद से बादलों में छोड़े जाएंगे।
इन कणों की खासियत ये है कि ये नमी को आकर्षित कर
बादलों के भीतर हलचल पैदा करते हैं —
जिससे बारिश की प्रक्रिया तेज़ होती है।
इस तकनीक का सबसे खास पहलू है इसका नया वितरण सिस्टम,
जिससे बादलों में ये तत्व बिल्कुल सटीक और असरदार तरीके से फैलते हैं।
अगर यह पायलट सफल रहा,
तो आने वाले समय में दिल्ली जैसे महानगरों के लिए यह एक नई दिशा बन सकता है।
दिल्ली की हवा में होने वाले बदलावों को पल‑पल रिकॉर्ड करने के लिए
शहर में कुछ ख़ास स्टेशन लगाए जाएंगे —
जिन्हें CAAQMS कहा जाता है।
ये मशीनें लगातार ये जांचेंगी कि हवा में
PM2.5 और PM10 जैसे खतरनाक कणों की मात्रा कितनी है।
सरकार को उम्मीद है कि
ये तकनीक सिर्फ बारिश लाने का ज़रिया नहीं बनेगी —
बल्कि यह एक वैज्ञानिक हथियार साबित होगी उस ज़हर के खिलाफ
जिसे दिल्लीवाले हर रोज़ अपनी सांसों में महसूस करते हैं।
इस पूरी कोशिश के दो मजबूत सहारे होंगे —
एक, IIT कानपुर, जो इस तकनीकी प्रयोग की बुनियाद को संभालेगा।
दूसरा, भारतीय मौसम विभाग (IMD),
जो आसमान में तैरते हर बादल की हालत पर नज़र रखेगा।
IMD हर पल ये बताएगा कि
किस दिशा में कितना नमी है, कौन-सा बादल बारिश लाने लायक है और कौन नहीं।
ये सब मिलकर ये तय करेंगे कि
बारिश की कोशिश यूं ही न हो जाए — बल्कि तभी हो जब आसमान खुद भी तैयार हो।
बारिश से पहले की राहत: धूल-धुआं बहकर सड़कों और हवा से दूर होगा
जैसे ही आसमान से पहली बूँदें गिरती हैं,
दिल्ली-NCR की सड़कों पर जमी महीनों की धूल मानो बह जाती है।
मॉनसून से पहले की ये शुरुआती बारिश
ना सिर्फ ज़मीन को ठंडक देती है, बल्कि हवा में फैले ज़हरीले कणों को भी नीचे गिरा देती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि
ये हल्की मगर व्यापक बारिश
PM2.5 और PM10 जैसे प्रदूषण कणों को धोकर
वातावरण को कुछ समय के लिए साफ कर देती है —
बिलकुल वैसे ही जैसे कोई धूल भरी खिड़की धो दी गई हो।
अगर ये प्रयोग अपने पहले चरण में सफल रहा,
तो इसे सिर्फ एक स्थानीय पहल तक सीमित नहीं रखा जाएगा।
सरकार इसके लिए अलग से फंडिंग का प्रस्ताव तैयार करेगी,
ताकि इसे देश के दूसरे हिस्सों में भी अपनाया जा सके।
इसके साथ ही, IIT-Delhi जैसे बड़े संस्थान भी इस योजना से जोड़े जा सकते हैं,
जिससे ये मॉडल सिर्फ एक शहर की कोशिश न रह जाए —
बल्कि पूरे भारत के लिए एक स्थायी समाधान की दिशा में पहला कदम बन सके।
यह पहल एक जरूरी शुरुआत है — हवा की लड़ाई अब थमेगी नहीं।
लेकिन साथ ही वे यह चेतावनी भी देते हैं कि
अगर इस प्रक्रिया की निगरानी पूरी सख्ती और निरंतरता से नहीं हुई,
तो इसका असर केवल सकारात्मक नहीं होगा।
"बिना सटीक निगरानी के, हम पर्यावरण में वो हस्तक्षेप कर बैठेंगे,
जो प्राकृतिक संतुलन को धीरे‑धीरे कमजोर कर सकता है,"
ऐसा मानना है पर्यावरण विज्ञान से जुड़े कई शोधकर्ताओं का।