गुरुवार, 10 जुलाई 2025

लकड़ी बेचने वाले लड़के ने पास किया UPSC – एक सच्ची और दिल छू लेने वाली कहानी

 

🌲 लकड़ियों से सपनों तक – विवेक चौहान की असली कहानी

बिहार के सीमावर्ती ज़िले अररिया का एक गांव – बिजली नहीं, स्कूल आधे दिन चलता था और बारिश में सड़कें कीचड़ बन जाती थीं। वहीं रहता था विवेक चौहान, एक गरीब परिवार का बेटा, जिसका सपना था IAS अफसर बनना।

पर सपनों के रास्ते सीमेंट के नहीं, कांटों के बने थे।

👨‍👩‍👦‍👦 बचपन की गरीबी और जिम्मेदारी

विवेक के पिता रामकिशोर चौहान जंगल से लकड़ियां लाकर गांव में बेचते थे। घर में 5 भाई-बहन, छोटा सा झोपड़ी जैसा घर, और दिन में दो वक्त का खाना भी कभी-कभी नसीब नहीं होता था।

विवेक ने 10 साल की उम्र में पिता के साथ लकड़ियां उठाना शुरू किया।
हर सुबह 4 बजे उठना, जंगल जाना, सूखी लकड़ियां चुनना, उन्हें बंडल बनाकर सिर पर लाना – यही उसकी दिनचर्या बन गई।

📚 पढ़ाई की जिद – मिट्टी पर बैठकर

गांव में एक सरकारी स्कूल था जहां किताबें तो थीं, पर शिक्षक नहीं। विवेक दोपहर को लकड़ी बेचने के बाद स्कूल जाता था।
स्कूल में बेंच नहीं थी, वो मिट्टी पर बैठकर पढ़ता। और शाम को वापस घर आकर, लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करता।

एक बार गांव के प्रधान ने ताना मारा –
"IAS? तू? लकड़ी बेचने वाला?"

विवेक ने जवाब नहीं दिया, लेकिन उस दिन से वो हर रात 1 घंटा एक्स्ट्रा पढ़ने लगा।


📖 पहला बड़ा पड़ाव – 10वीं में टॉप

जब 10वीं का रिजल्ट आया, तो पूरे ब्लॉक में पहला नाम था "Vivek Kumar Chauhan – 92%"

गांव में हलचल मच गई। स्कूल के प्रिंसिपल ने पहली बार घर आकर पिता को बधाई दी।

लेकिन यही खुशी एक बड़ी चिंता लेकर आई – "अब आगे की पढ़ाई कैसे होगी?"


🛠️ मेहनत और पढ़ाई साथ-साथ

विवेक ने इंटर की पढ़ाई गांव के पास वाले कस्बे से की, लेकिन खर्च उठाने के लिए उसने दिन में खेतों में मजदूरी करना शुरू किया।

  • सुबह पढ़ाई

  • दोपहर खेत में काम

  • रात को कोचिंग सेंटर के बाहर खड़ा रहकर लेक्चर सुनना

"कभी-कभी भूखा रहना पढ़ाई से बेहतर लगता था" – विवेक ने बाद में कहा।


🧠 UPSC की तैयारी – 4 साल का संघर्ष

कॉलेज खत्म होते ही विवेक ने दिल्ली के मुकर्जीनगर का रुख किया। जेब में सिर्फ ₹1100 और एक बैग।

उसने एक छोटे से पीजी में रहकर:

  • दिन में लाइब्रेरी में पढ़ाई की

  • रात को टिफिन पैकिंग का काम किया

  • वीकेंड पर कोचिंग नोट्स फोटो स्टेट कर के बेचे

पहले दो अटेम्प्ट में वो प्री तक भी नहीं पहुंचा।
लोगों ने कहा: "तू वापस गांव चला जा बेटा, ये तेरा काम नहीं।"


✨ तीसरे प्रयास में चमत्कार

विवेक ने तीसरे प्रयास के लिए दिन-रात एक कर दिया। फोन बंद, सोशल मीडिया से दूरी, सिर्फ एक लक्ष्य – IAS।

इस बार उसने प्रीलिम्स भी निकाला, मेन्स भी निकाला और इंटरव्यू में भी टॉप किया।

UPSC AIR Rank – 87


🏛️ आज का विवेक चौहान

आज विवेक चौहान बिहार कैडर के एक जिले में IAS अधिकारी हैं।

  • गांव में हर साल मुफ्त UPSC सेमिनार कराते हैं

  • गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए कोचिंग सेंटर खोल चुके हैं

  • उनके पिता अब भी लकड़ियां नहीं बेचते, लेकिन गांव में इज्ज़त से लोग उन्हें "IAS के बाबूजी" कहते हैं


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"अगर ज़मीन से उठकर आसमान छूना है, तो हालात नहीं, हौसले मायने रखते हैं।"

विवेक की कहानी बताती है कि गरीबी, ताने, असफलताएं — कुछ भी आपको रोक नहीं सकते अगर मन में आग हो।