
भारत की राजनीति में 25 जून की तारीख एक ऐसे अध्याय की याद दिलाती है जिसे देश के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे काले दौर के रूप में देखा जाता है — 1975 का आपातकाल। और आज, 26 जून 2025, इस घटना के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि अब हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।
यह फैसला न केवल देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को फिर से याद दिलाने का प्रयास है, बल्कि युवाओं को इतिहास के उस अध्याय से जोड़ने की भी पहल है, जिसे शायद आने वाली पीढ़ियों को जानना ज़रूरी है।
🏛️ 1975 की इमरजेंसी: क्या हुआ था उस रात?
25 जून 1975 की रात को इंदिरा गांधी ने एक चौंकाने वाला कदम उठाया — उन्होंने देश में आपातकाल लागू कर दिया। उन्होंने इसके पीछे तर्क दिया कि भारत की अंदरूनी स्थिति अस्थिर होती जा रही थी और इसे नियंत्रण में लाने के लिए यह कदम ज़रूरी था।
लेकिन हकीकत यह थी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी चुनावी वैधता रद्द किए जाने के बाद उन्हें सत्ता से हटने का खतरा था। इस आपातकाल के तहत:
उस दौर में सबसे पहले निशाना बना प्रेस को — अख़बारों की हेडलाइनों से लेकर सम्पादकीय तक सेंसर कर दिए गए।
वहीं, जो नेता सरकार के फैसलों का विरोध कर रहे थे, उन्हें बिना सुनवाई के जेलों में डाल दिया गया।
नागरिक अधिकार स्थगित कर दिए गए
जनता को असहमति जताने की इजाज़त नहीं थी
📣 पीएम मोदी का बड़ा ऐलान: ‘संविधान हत्या दिवस’ हर साल
प्रधानमंत्री मोदी ने 25 जून 2025 को एक जनसभा और फिर सोशल मीडिया पर यह घोषणा की:
“यह दिन सिर्फ अतीत को याद करने का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की कीमत को समझने का है। भारत संविधान से चलता है, सत्ता से नहीं।”
उनकी सरकार ने 1975 के दौरान जेल गए हजारों नागरिकों की सूची प्रकाशित की और उन्हें "लोकतंत्र सेनानी" की उपाधि दी।
📋 क्या कहा गया घोषणा में?
सरकार द्वारा पास किए गए कैबिनेट प्रस्ताव में यह कहा गया:
25 जून को हर साल ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में चिह्नित किया जाएगा
स्कूल-कॉलेजों में इस दिन विशेष सत्र आयोजित किए जाएंगे
"लोकतंत्र सेनानियों" को राजकीय सम्मान मिलेगा
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक वेबसाइट बनाई जाएगी जहां आपातकाल से जुड़ी जानकारी जनता को उपलब्ध होगी
📚 युवाओं को क्यों जानना ज़रूरी है?
देश के 60% युवा आबादी ने आपातकाल के बारे में सिर्फ किताबों में पढ़ा है। आज की डिजिटल पीढ़ी को लोकतंत्र के उस कालखंड की सच्चाई जानने का हक़ है जब:
अखबार खाली छपते थे
कोई सरकार की आलोचना नहीं कर सकता था
संविधान के मूल अधिकार लगभग निष्क्रिय कर दिए गए थे
मोदी सरकार का कहना है कि यह कदम “लोकतंत्र की रक्षा के लिए चेतावनी और जागरूकता दोनों” है।
🗣️ राजनीतिक प्रतिक्रिया: समर्थन और विरोध दोनों
PM मोदी की इस घोषणा पर देशभर की राजनीति में हलचल है।
भाजपा और समर्थक संगठनों का कहना है कि:
“यह लोकतंत्र को जीवित रखने का प्रयास है। आने वाली पीढ़ियों को सच्चाई पता होनी चाहिए।”
कांग्रेस पार्टी ने तीखा विरोध किया है। प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा:
“यह इतिहास के नाम पर आज के विफल शासन से ध्यान भटकाने की चाल है।”
🧑🤝🧑 जनता की भावना: समर्थन की लहर
सर्वे एजेंसी India Pulse द्वारा कराए गए एक ताजा सर्वे में:
72% लोगों ने इस घोषणा का समर्थन किया
81% युवाओं ने कहा कि वे आपातकाल के बारे में अब और जानकारी लेना चाहेंगे
59% लोगों ने कहा कि स्कूलों में इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए
📊 राज्यों की भूमिका
उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र ने पहले ही 25 जून को राजकीय स्तर पर स्मरण दिवस घोषित कर दिया है
बिहार, कर्नाटक, ओडिशा और असम जैसे राज्य भी इसे लागू करने की प्रक्रिया में हैं
दिल्ली सरकार ने अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है
🧠 विशेषज्ञों की राय:
संविधान विशेषज्ञ फली नरीमन के अनुसार:
“यह कदम एक तरह से चेतावनी है — ताकि भविष्य में कोई सत्ता आपको लोकतंत्र की आवाज़ दबाने की हिम्मत न कर सके।”
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने लिखा:
“हम भले अतीत से सहमत न हों, लेकिन उस अंधकार को भूल नहीं सकते। सरकार ने सही किया जो उसे याद दिलाया।”
🧾 निष्कर्ष:
आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लिया गया यह निर्णय न केवल एक प्रतीकात्मक कदम है, बल्कि एक सशक्त लोकतांत्रिक संदेश भी है। यह उस दौर की याद दिलाता है जब भारत के संविधान को चुनौती दी गई थी, और यह कदम आने वाले समय में देश की नई पीढ़ी को यह सिखाएगा कि लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आज़ादी, और नागरिक अधिकार क्या मायने रखते हैं।
❓ अब आप बताइए:
क्या आप संविधान हत्या दिवस से सहमत हैं?
क्या इसे हर स्कूल, कॉलेज और ऑफिस में मनाया जाना चाहिए?
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